येऊ दे तुफान | येऊ दे तुफान |
शहरांत आतां | पाण्यासाठी ||
शहरांत आतां | पाण्यासाठी ||
एके काळी होता | चेंदणी तो भाग | जुना गावठाण | ठाणे गांव ||१||
इथे होते वाडे | अशा रचनेचे | मागे ती विहीर | पुढे घर ||२||
दोन मजली ती | टुमदार घरं | वाडा संस्कृतीची | होती गल्ली ||३||
पुढे मोठे घर | वाड्यात विहीर | रहाट गाडगं | विहिरीला ||४||
बाकी ती मोकळी | जागा झाडांसाठी | नाना प्रकारची || झाडे होती ||५||
एकूण वाड्याची | जमीन पाहिली | साठ टक्के जागा | मोकळी ती ||६||
मग अशा जागी | पाणी मुरायचे | झरे वाहायचे | विहिरीत ||७||
पाऊस पडतां | तुडुंब विहीर | भरून जायची | ओसंडून ||८||
झाडे होती खूप | त्यांना मिळे पाणी | न्हाणी घराचे ते | सोडले जे ||९||
जमिनीत पाणी | असे मुरायचे | झाडांना पाणी ते | पुरायचे ||१०||
कोणे एके काळी | चेंदणी भागांत | पाणी मुरायचे | पावसाचे ||११||
नव्हतेच तेव्हा | पाणी ते नळाला | आंघोळी सर्वांच्या | विहिरीत ||१२||
पिण्यायोग्य होते | विहिरीचे पाणी | होता तो उपसा | विहिरीला ||१३||
वाडा दिसे छान | हिरवागार तो | नैसर्गिक थंड | हवा होती ||१४||
मग दिवाळीत | सणाच्या दिवशी | थंडी हा मौसम | वाटायचा ||१५||
आता ती थंडी | नाही जाणवत | पळून ती गेली | कायमची ||१६||
उन्हाच्या त्या झळा | इतक्या नव्हत्या | मुरायचे पाणी | मुबलक ||१७||
म्हणून रे बाबा | पूर्ण वर्षभर | थोडे थंड वाटे | जुन्या काळी ||१८||
भासली नव्हती | गरज पंख्यांची | वातानुकूलन | यंत्रांचीही ||१९||
वाडे ते पाडले | चाळी हो पाडल्या | नवीन बांधल्या | इमारती ||२०||
वाडा संस्कृतीचा | नाश तो रे झाला | अध्याय संपला | एक मोठा ||२१||
काळाच्या उदरीं | गडप तो झाला | वाड्यांचा तो काळ | भूतकाळ ||२२||
शेताड जमीन | खूप होती इथे | जुन्या ठाण्यामध्ये | जुन्या काळी ||२३||
वन जमिनीची | वाताहत झाली | वृक्ष तोड झाली | खूप खूप ||२४||
गावठाण गांव | शहर बनले | शहर वाढले | चहूं दिशे ||२५||
फार थोडी आहे | जमीन उघडी | हातावर मोजा | मैदाने ती ||२६||
फार थोड्या बागा | आहेत हो छोट्या | कुठे मुरणार | पाणी आता ||२७||
रस्ता रुंदीकरण | शहरांत झाले | रस्तेही बांधले | सिमेंटचे ||२८||
भूमी बंद केली | सिमेंट लावूनी | पाणी ते वाहते | गटारांत ||२९||
पाणी थेट जाते | मोठ्या गटारांत | तिथून ते जाते | खाडीमधे ||३०||
भूमी तहानली | कोरडी पडली | थंडावा तो गेला | जमिनीचा ||३१||
झरे ते वाळले | विहिरी आटल्या | कोरड्या पडल्या | शहरांत ||३२||
कूपनलिका त्या | गृह संकुलांत | अनेक खोदल्या | पाण्यासाठी ||३३||
लागे वीज खूप | पंप ते चालती | पाणी ते आटले | जमिनीचे ||३४||
निसर्गाची टाकी | पाण्याची रिकामी | कोण भरेल ती | जाणावे बा ||३५||
उपाय तो आहे | पाणी भरा आता | निसर्गाची टाकी | पुन्हा भरा ||३६||
जितके घेतले | तितके भरावे | उपसा करावा | तितकाच ||३७||
भावी पिढीचे ते | आ-ताच घेतले | पाणी ते आ-ताच | उपसलें ||३८||
पुन्हा पाणी भरा | एक तो कोपरा | मोकळा असावा | पाण्यासाठी ||३९||
गृह संकुलात | पावसाचे पाणी | मुरविणे आहे | जमिनीत ||४०||
छपराचे पाणी | जाते वाहून ते | गटारात वाया | जाऊ नये ||४१||
पावसाचे पाणी | गोड ते निर्मळ | वाया गेले पहा | किती वर्षं ||४२||
गोड पाणी जाते | खाडीत मिळते | सांडपाणी होते | खारट ते ||४३||
खाडीत मिळते | पावसाचे पाणी | आधीच जिरवा | जरुरी ते ||४४||
आधीच मुरवा | पाणी जमिनीत | करावी व्यवस्था | त्वरेने ती ||४५||
करावा तो खड्डा | एक कोपऱ्यात | टाकावे दगड | तयामधे ||४६||
छपराचे एक | पन्हळ जोडावे | खड्ड्यात सोडावे | पाणी आता ||४७||
हजारो लिटर | पाणी ते मिळेल | शहरी भागात | आरामात ||४८||
क्षारता पाण्याची | कमी ती होईल | पाणी मुरवितां | पावसाचे ||४९||
गोड पाणी तुम्हा | पुन्हा ते मिळेल | नकोच ती चिंता | पाण्यासाठी ||५०||
सर्व शहरांत | गृह संकुलांत | पाणी मुरवावे | पावसाचे ||५१||
पाणी जिरंवावे | स्वावलंबी व्हावे | नको रडगाणे | उन्हाळ्यात ||५२||
वाढली ती संख्या | गृहसंकुलांची | पाण्याचा तो प्रश्न | सोडवावा ||५३||
भविष्यात धरण | फुटले जर ते | किती तो उडेल | हाहाःकार ||५४||
त्याचीच योजना | आ-ताच करावी | पाणी साठवा ते | जमिनीत ||५५||
नको आता प्रश्न | हिय्या तो करावा | निश्चय धरावा | पाण्यासाठी ||५६||
पाणी हे जीवन | जाण रे माणसां | होत का नाहीरे | कारवाई ||५७||
पाणी मुरविणे | सामाजिक देणे | ऋण ते फेडणे | निर्सगाचे ||५८||
होईल जीवन | सुखी समाधानी | पाणी मुरवा ते | जमिनीत ||५९||
पर्यावरणाची | साखळी जोडणे | तेच रे कल्याण | मानवाचे ||६०||
आता खेडेगावी | तुफान आलया | मोहीम चालली | जोरदार ||६१||
पण इथेसुद्धा | गरज आहे ती | शहरांत पाणी | मुरवावे ||६२||
पावसाचे पाणी | शहरीं मुरविता | वाचेल ते पाणी | धरणाचे ||६३||
हजारो लिटर | मुबलक पाणी | बचत पाण्याची | धरणांत ||६४||
उरलें जे पाणी | गावाला मिळेल | एकमेका सहाय्य | होईल हो ||६५||
वळवा ते पाणी | जिथे आहे शेती | मुबलक धान्य | पीकवा ते ||६६||
शेतीला पाणी ते | मिळेल असे हो | प्राधान्य ते द्यावे | योजनेला ||६७||
पाणी मिळतां ते | सुखाने नांदेल | बळीराजा त्याच्या | घरामधे ||६८||
गृह संकुलात | जमिनीत आता | मुरेल ते पाणी | खूप खूप ||६९||
आपणही आता | शहरांत सुद्धा | तुफान आलंया | म्हणूया रे ||७०||
येऊ दे तुफान | येऊ दे तुफान | शहरांत आतां | पाण्यासाठी ||७१||
लेखक / कवी - सुरेश पित्रे, चेंदणी, ठाणे (पश्चिम)